Thursday, February 18, 2016

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५ ,फ़रबरी २०१६ में

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल नबी मुंबई से प्रकाशित जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५    ,फरबरी  २०१६  में प्रकाशित हुयी है . संपादक श्री विजय कुमार सिंघल जी और सह संपादक विभा रानी श्रीबास्तव और अरबिंद कुमार साहू जी , आपका बहुत बहुत आभार मुझे स्थान  देने के लिए। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .



 ग़ज़ल (इशारे)

किसी   के  दिल  में चुपके  से  रह  लेना  तो  जायज  है
मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते

नज़रों  से मिली नजरें  तो नज़रों में बसी सूरत
काश हमको उस खुदाई के नजारें  भी दिए होते

अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलते  दो कदम संग में , सहारे भी दिए होते

जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम , सारे दे दिए होते

दिल को भी जला लेते ख्बाबों को जलाते  हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

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