Thursday, July 16, 2015

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १० ,जुलाई २०१५ में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १०    ,जुलाई २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




                             


 ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)


 

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)
 

मदन मोहन सक्सेना

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ९ ,जून २०१५ में

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ९  ,जून २०१५ में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ९   ,जून  २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .





ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )



मैं रोता भला था , हँसाया मुझे क्यों
शरारत है किसकी , ये किसकी दुआ है

मुझे यार नफ़रत से डर ना लगा है
प्यार की चोट से घायल दिल ये हुआ है

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
जिधर देखिएगा  धुँआ ही धुँआ है

मेहनत से बदली "मदन " देखो किस्मत
बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है


मदन मोहन सक्सेना