Monday, March 9, 2015

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ७ ,मार्च २०१५ में

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ७  ,मार्च  २०१५ में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ७  ,मार्च  २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
 


ग़ज़ल (कौन सुनेगा अपनी बात )

किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात
सुनने बाले ब्याकुल हैं अब अपना राग सुनाने को

हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके
सबने खूब बहाने  सोचे मंदिर मस्जिद जाने को

कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है
द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को

दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने  को पानी न मिलता
भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को

जिसे देखिये मिलता है अब चेहरे पर मुस्कान लिए
मुश्किल से मिलती है बातें दिल से आज लगाने को

क्यों दिल में दर्द जगा देती है  तेरी यादों की खुशबु
गीत ग़ज़ल कबिता निकली है महफ़िल को महकाने  को



प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना
 

3 comments:

  1. बहुत खूब ... बधाई हो ...

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  2. बहुत ही उम्‍दा गजल प्रस्‍तुत की है आपने। धन्‍यवाद।

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