Friday, August 8, 2014

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक २ , अगस्त २०१४ में


मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक २  , अगस्त  २०१४ में



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक ६   , अगस्त २०१४  में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .





 



दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है


अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है


किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है


क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है


दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है


भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
"मदन " हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है




मदन मोहन सक्सेना

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