Friday, August 8, 2014

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक १२ , फरबरी , २०१४ में

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक १२  , फरबरी   , २०१४  में







प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक १२  , फरबरी  २०१४  में प्रकाशित हुयी है  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .


सजा क्या खूब मिलती है , किसी से दिल लगाने की
तन्हाई की महफ़िल में आदत हो गयी गाने की 


हर पल याद रहती है , निगाहों में बसी सूरत
तमन्ना अपनी रहती है खुद को भूल जाने की 


उम्मीदों का काजल जब से आँखों में लगाया है
कोशिश पूरी रहती है , पत्थर से प्यार पाने की 


अरमानो के मेले में जब ख्बाबो के महल टूटे
बारी तब फिर आती है , अपनों को आजमाने की 


मर्जे इश्क में अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्बहिश मौत पाने की



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


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