Thursday, August 7, 2014

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक ११ , जनवरी , २०१४ में

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक ११ , जनवरी  , २०१४  में







प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक ११ , जनवरी  , २०१४  में प्रकाशित हुयी है  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .








किसी के दिल में चुपके से रह लेना तो जायज है
मगर आने से पहले कुछ इशारे भी किये होते


नज़रों से मिली नजरे तो नज़रों में बसी सूरत
काश हमको उस खुदाई के नज़ारे भी दिए होते 


अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते 


जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते 


दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

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