मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक ५ , जुलाई २०१४ में
मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक ५ , जुलाई २०१४ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक ५ , जुलाई २०१४ में
प्रकाशित हुयी है .
आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
जाना जिनको कल अपना आज हुए बो पराये है
दुनिया के सारे गम आज मेरे पास आए है
न पीने का है आज मौसम ,न काली सी घटाए है
आज फिर से नैनो में क्यों अश्क बहके आए है
रोशनी से आशियाना यारो अक्सर जलता है
अँधेरा मेरे मन को आज खूब ज्यादा भाए है
जब जब देखा मैंने दिल को ,ये मुस्कराके कहता है
और जगह बाक़ी है, जखम कम ही पाए है
अब तो अपनी किस्मत पर रोना भी नहीं आता
दर्दे दिल को पास रखकर हम हमेशा मुस्कराए है
मदन मोहन सक्सेना
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